
गोरक्षपीठ के दो दिव्य आचार्यों—ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 56वीं और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 11वीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओजस्वी शब्दों में श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।
“अयोग्य व्यक्ति नहीं होता, योग्य गुरु की तलाश होती है”
योगी आदित्यनाथ ने श्लोक “अमन्त्रमक्षरं नास्ति…” का हवाला देते हुए कहा:
“मनुष्य अयोग्य नहीं होता, उसे केवल सही दिशा दिखाने वाला गुरु चाहिए। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ऐसे ही सुयोग्य योजक थे जिन्होंने राष्ट्र और समाज को दिशा दी।”
महंतद्वय ने भारत की आत्मा को जगाया
सीएम योगी ने कहा कि दोनों संतों ने धर्म, समाज और राष्ट्र के उन्नयन के लिए अपनी समूची जीवन-ऊर्जा समर्पित कर दी। राम मंदिर आंदोलन से लेकर सामाजिक समरसता के अभियान तक, इन संतों की भूमिका युगनिर्माणकारी रही।
राम मंदिर आंदोलन के सेनानी थे महंतद्वय
योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कहा:
“अगर महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ न होते, तो राम मंदिर का सपना कभी पूरा नहीं होता।”
उनके इस कथन की पुष्टि सभा में उपस्थित डॉ. रामविलास वेदांती और जगद्गुरु वासुदेवाचार्य ने भी की।
गुलामी के प्रतीकों को तोड़ने वाले संकल्पशील संत
सीएम योगी ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने न केवल आध्यात्मिक ऊंचाई हासिल की, बल्कि गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करने का भी संकल्प लिया था। श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण उसी संकल्प का साकार रूप है।
शिक्षा और सेवा के प्रतीक: महंत दिग्विजयनाथ
महंत दिग्विजयनाथ द्वारा 1932 में स्थापित ‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद’ ने गोरखपुर की शैक्षिक क्रांति का बीज बोया। उन्होंने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए अपने दो कॉलेज दान में दे दिए—यह समर्पण आज के समय में दुर्लभ है।
साधु का परिवार होता है समाज
CM योगी ने संत परंपरा की व्याख्या करते हुए कहा:
“साधु अकेला होता है, समाज उसका परिवार, राष्ट्र उसका कुटुंब और सनातन उसकी जाति होती है। ऐसा संत जब संकल्प लेता है, तो पूरा ब्रह्मांड उसका साथ देता है।”
विरासत से प्रेरणा लें: मुख्यमंत्री
उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ की यह परंपरा मूल्य, अनुशासन और विरासत का जीवंत उदाहरण है। युवाओं को चाहिए कि वे इन पुण्य स्मृतियों से प्रेरणा लें और राष्ट्रनिर्माण में योगदान करें।
प्रमुख संतों की उपस्थिति और विचार
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डॉ. रामविलास वेदांती: “महंतद्वय नहीं होते तो मंदिर नहीं बनता।”
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स्वामी वासुदेवाचार्य: “महंत दिग्विजयनाथ में महाराणा प्रताप की मिट्टी का शौर्य था।”
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डॉ. रामकमलाचार्य: “दोनों संत सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे।”
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महंत बालकनाथ: “गोरक्षपीठ ने हमें धर्म, संस्कृति और संस्कार की शिक्षा दी।”
विकसित भारत: केवल राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक संकल्प
सीएम योगी ने पीएम मोदी के “विकसित भारत” मंत्र की सराहना की और कहा:
“यह केवल राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि भारत और भारतीयता का संस्कृतिक स्वरूप है। इसकी पूर्ति के लिए हर नागरिक को संकल्प लेना होगा।”
गोरक्षपीठ का इतिहास सिर्फ मंदिरों का नहीं, बल्कि धर्म, शिक्षा, समरसता और राष्ट्रनिर्माण का इतिहास है। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ की पुण्य स्मृति में आयोजित यह श्रद्धांजलि सभा, न सिर्फ भावनाओं का संगम थी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत संदेश भी।
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